सार्वभौम मूल आय : उद्देश्य, पेशेवरों और विपक्ष
[UNIVERSAL BASIC INCOME (UBI)]

UNIVERSAL BASIC INCOME

परिचय:-
➥ पिछले कुछ सालों में, हमने कई विशेषज्ञों को देखा है जो भारत के लिए एक सार्वभौमिक मूल आय (UBI) के लिए सुझाव देते रहे हैं।
➥ इस विचार को और मजबूती मिली जब 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में कुछ ऐसा ही प्रस्ताव रखा गया।
➥ UNIVERSAL BASIC INCOME (UBI) के पक्ष में काफी स्पष्ट तर्क अभिव्यक्त किए गए।
➥ हालांकि आगामी केंद्रीय बजट 2017-18 इस बारे में मौन ही रहा लेकिन हाल में सरकार की ओर से इसके पक्ष में संकेत आने शुरू हो गए हैं।
➥ ऐसी योजना के 2017 के अंत तक संचालित होने की और वर्ष 2018-19 से इसके सीमित पैमाने पर लागू होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
➥ यद्यपि, ऐसी योजना लागू करने से पहले भारत सरकार को इसके साथ जुड़ी कई चिंताओं का समाधान करना होगा।
Universal Basic Income: Purpose, Pros and Cons:-
➥ सार्वभौम मूल आय (UNIVERSAL BASIC INCOME (UBI)) के विचार को हमने प्रजातांत्रिक से लेकर गैर-प्रजातांत्रिक देशों, फ्रांस से लेकर फिनलैंड और चीन (जहां इसके जैसी ही योजना, ‘dibao‘ लागू की जा चुकी है) तक में धरातल पर उतरते देखा है और वहां से यह विचार हम तक पहुंचा है।
➥ सामान्य तौर पर ऐसी योजनाओं के लिए कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया जाता।
➥ इस योजना में व्यक्तिगत आधार पर एक निश्चित रकम ससमय सभी को हस्तांतरित कर दी जाती है।
➥ इस विचार के पीछे यह सुनिश्चित करने की भावना छिपी है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति को एक निश्चित स्वतंत्रता एवं गरिमा के साथ जीवन व्यतीत करने के साधन प्राप्त हों और उपार्जन की क्षमता या रोजगार की उपलब्धता के मुकाबले ये स्वतंत्र हों।
➥ यह विचार बेहद आकर्षक प्रतीत हो रहा है क्योंकि इसमें गरीबी और असमानता दोनों को कम करने की क्षमता अंतर्निहित है।
Universal basic income Payment:-
➥ भारत में पहले भी वर्ष 2010 में मध्य प्रदेश में इस तरह की एक योजना संचालित की जा चुकी है।
➥ आर्थिक सर्वेक्षण, 2016-17 में 7,620 रुपये की राशि प्रत्येक वर्ष UNIVERSAL BASIC INCOME (UBI) के लाभार्थियों के खातों में हस्तांतरित करने का प्रस्ताव रखा गया है।
➥ हालांकि किसी को अपने जीवन-यापन के लिए जितनी रकम की आवश्यकता होती है यह उससे काफी कम है, लेकिन यह गरीबी को 22 प्रतिशत से 0.5 प्रतिशत तक कम कर देगी!
➥ सैद्धांतिक रूप से, UBI को भारत सरकार द्वारा संचालित लगभग 950 कल्याणकारी योजनाओं (जीडीपी के लगभग 5 प्रतिशत की लागत से) से ‘पुनर्चक्रित कोष‘ (रीसाइक्लिंग फंड) के माध्यम से वित्त पोषित करने का प्रस्ताव है।
➥ वर्तमान में भारत सरकार द्वारा जरूरतमंदों को रियायती दर पर भोजन, जल, उर्वरक और कई अन्य चीजें उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ऐसी योजनाएं संचालित की जा रही हैं।
➥ सरकार की रियायतों (सब्सिडी) का एक बड़े हिस्से का आनंद अभी भी देश के अमीर लोग (आर्थिक सर्वेक्षण 2015-17 के अनुसार) उठा रहे हैं।
योजना के कार्यान्वयन की रूपरेखा :-
(Working out the Scheme)
➥ इससे पहले कि भारत में इस योजना की शुरूआत की जाए, ऐसे कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिनका निपटारा जरूरी प्रतीत होता है।
➥ UNIVERSAL BASIC INCOME (UBI) के जुड़े प्रमुख मुद्दों पर एक संक्षिप्त सर्वेक्षण नीचे दिया गया है:-
वित्तीय प्रारूप (मॉडल):-
- पहला और सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा इसके लिए पर्याप्त फंड जुटाना है।
- यदि हम ‘आर्थिक सर्वेक्षण, 2016-17’ के प्रस्ताव की ओर अपना रुख करें तो भारत सरकार द्वारा संचालित मौजूदा केंद्रीय क्षेत्र और केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के धन को पुनर्चक्रित करने की सलाह दी गई है।
- लेकिन UNIVERSAL BASIC INCOME (UBI) शुरू करने के लिए ऐसी योजनाएं बंद नहीं की जा सकतीं। यह केवल चरणबद्ध तरीके से ही किया जा सकता है।
- तब तक भारत सरकार को इसके लिए बजटीय या गैर-बजटीय स्रोतों से अतिरिक्त धन जुटाने की जरूरत होगी।
- ऐसा अनुमान व्यक्त किया गया है कि प्रस्तावित जीएसटी जुलाई 2017 से लागू हो जाने पर, टैक्स संग्रह में वित्तीय कमी का अनुमान 66,000 करोड़ रुपये (कई उपकर और अधिभार में कटौती के कारण) के करीब है।
- बजटीय समर्थन कोई बहुत व्यवहार्य विकल्प नहीं दिखता है।
- हालांकि कुछ अन्य सकारात्मक उपाय भी कतार में शामिल हैं, जैसे-कम नकदी पर जोर देने के कारण कर में वृद्धि, नकद लेन-देन पर प्रस्तावित सीमित रोक, आयकर रिटर्न दाखिल करने के लिए आधार एवं पैन संख्या के साथ इसकी संबद्धता एवं रकम लेन-देन को आधार से जोड़ना आदि प्रमुख हैं।
- जीएसटी के कार्यान्वित होने से कर संग्रह में बढ़ोतरी की उम्मीद है (हालांकि मध्यम अवधि में)।
- UNIVERSAL BASIC INCOME (UBI) के साथ ही प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों की चोरी पर रोक की उम्मीद है।
लाभार्थियों का चयनः–
- नाम से जो संकेत मिल रहे हैं उससे इसके सब पर लागू होने का पता चलता है, लेकिन सर्वेक्षण सहित भारत सरकार से प्राप्त हो रहे संकेतों से जाहिर होता है कि इस योजना को आंशिक रूप से ही लोकार्पित किया जाएगा।
- ऐसी स्थिति में, लक्षित जनसंख्या को गरीबी रेखा के निचले स्तर से शामिल किया जा सकता है।
- नीति आयोग के सीईओ ने आरंभिक दौर में इसके लिए गरीबी रेखा के नीचे जीवन जी रही 20 प्रतिशत की आबादी को शामिल करने का प्रस्ताव रखा है।
- UNIVERSAL BASIC INCOME (UBI) से सामाजिक न्याय के सामान्य नीति ढांचे से भी जोड़ा जा सकता है।
- यह न केवल वित्तीय आवश्यकताओं को निचले स्तर तक सीमित रखेगा बल्कि कई बार सरकार को कई कल्याणकारी योजनाओं, चाहे वह सरकार द्वारा संचालित हों या फिर प्रायोजित हो, से धन को पुनर्चक्रित भी करने देगा।
- भारत सरकार की ओर से एक सुझाव परिवार की महिला प्रमुख के बैंक खाते में नकदी को स्थानांतरित करने सम्बन्धी आया है।
हस्तांतरण की राशिः-
- कितना धन स्थानांतरित किया जाना चाहिए यह अब भी संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर निर्दिष्ट होता है।
- लाभार्थियों पर इसका असर दिखाने के लिए इसे बहुत बड़ा दिखना चाहिए।
- एक प्रस्ताव के रूप में, नीति आयोग के सीईओ ने मासिक आधार पर 1000 रुपये की राशि प्रस्तावित की है, जबकि सर्वेक्षण के प्रस्ताव (उदाहरण के तौर पर अधिक) में कुल मिलाकर 7,620 रुपये मासिक का उल्लेख किया गया है।
- आम तौर पर, यह माना जाता है कि बिना पर्याप्त धन हस्तांतरण के (जो कि लाभार्थियों के सुकूनदायी हो सकता है) स्थानांतरित किए बिना, यह योजना प्रभावी नहीं रह सकती है। यद्यपि, कम-से-कम अंतरण हस्तांतरण के साथ शुरू करना अच्छा लगता है।
- वित्तीय एवं आर्थिक समावेशन, एवं बहिष्करण, विनियमन और मूल्यांकन, आदि संबंधित अन्य मुद्दे हैं जो इसमें शामिल हैं। यह योजना वर्तमान समय में भारत सरकार के परीक्षणाधीन एवं अध्ययनाधीन है।
- उपर चर्चित मुद्दों से जुड़ी स्पष्टता इस योजना की घोषणा के बाद ही सामने आएगा।
सार्वभौम मूल आय के फायदे:-
Benefits of universal basic income (UBI)-
➥ भारत में कार्यान्वित कल्याणकारी योजनाएं कुछ आम समस्याओं जैसे कि, धन के गलत विनियोजन, अपव्यय और रिसाव, सम्मिलन और बहिष्करण कारकों, भूत-लाभार्थियों, भ्रष्टाचार, संचालन की लागत आदि प्रमुख मुद्दों का सामना कर रहे हैं।
➥ इस कारण से और अन्य कारणों से भी UNIVERSAL BASIC INCOME (UBI) की अवधारणा पर गंभीरता से विचार करने का तर्क दिया गया है।
➥ इसमें ऐसी कई योग्यताएं होंगी जो वर्तमान पुनर्वितरण योजनाओं में शामिल नहीं होंगी, जैसे:-
- यह उपरोक्त मौजूदा योजनाओं की कई कमजोरियों को कम करके लागू किया जाएगा।
- इसमें बहिष्करण त्रुटियों का खतरा होने की आशंका कम है।
- बैंक खातों में सीधे धन हस्तांतरण करके और नौकरशाही के कई स्तरों को पीछे छोड़कर, ‘आउट ऑफ सिस्टम’ से लीकेज की संभावना (सार्वजनिक वितरण प्रणाली के 45 फीसदी तक होने की स्थिति में) काफी कमतर होगी।
निष्कर्ष (Conclusion) —
- कार्यान्वयन की पर्याप्त चुनौतियां हैं, जिस पर UNIVERSAL BASIC INCOME (UBI) के लिए जाने से पहले समुचित तरीके से विचार-विमर्श किया जाना चाहिए।
- लेकिन ये चुनौतियां असंभव नहीं हैं। तथा इससे पार पाने के कई संभव तरीके भी उपलब्ध हैं।
- चूंकि इस विचार के लिए समर्थन एक व्यापक वैचारिक स्पेक्ट्रम (broad ideological spectrum) से आया है, ऐसा लगता है जैसे देश में इस योजना के लिए समय आ चुका है, इसलिए हमें इस दिशा में सक्रियता के साथ विचार करना चाहिए।