कुम्भलगढ़ दुर्ग
(Kumbhalgarh Fort)

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❂ इस दुर्ग का निर्माणकार्य महाराणा कुम्भा द्वारा 1448 में प्रारम्भ करवाया गया जो कि आगे चलकर 1458 ई. में पूरा हुआ । इस दुर्ग का मुख्य शिल्पी गुजरात का पण्डित मण्डन था ।
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से ऊपर की ओर देखने पर सिर की पगड़ी गिर जाती है ।”
गागरोन दुर्ग
(Gagaron Fort)

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❂ प्रसिद्ध जलदुर्ग गागरोन दुर्ग कोटा जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर की दूरी पर तथा झालावाड़ जिला मुख्यालय से
4 किलोमीटर की दूरी पर मुकन्दवाड़ा की पहाड़ियों पर कालीसिन्ध तथा आहू नदीयों के संगम पर स्थित है ।
❂ माना जाता है कि इस दुर्ग का निर्माण डोड़ा परमार शासकों द्वारा करवाया गया था, इस कारण इस दुर्ग को डोड़ागढ़ भी कहा जाता है । उपनाम :- डोड़गढ़, धूसरगढ़, मुस्तफाबाद, गर्गराटपुर आदि ।
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❂ गागरोन का प्रसिद्ध औदक दुर्ग दो शाकों के लिये जाना जाता है ।
प्रथम साका :- इस दुर्ग में प्रथम शाका 1423 में हुआ । इस समय गुजरात के प्रथम शासक होशांग शाह ने अचलदास खिची पर आक्रमण किया । अचलदास खिंची युद्ध में लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ ।
नोट :- इस युद्ध का वर्णन शिवदास गाडन ने अचलदास खिंची री वचनिका में किया है ।
दूसरा साका :- इस दुर्ग में द्वितीय शाका 1444 में हुआ जब मालवा के महमूद खिलजी प्रथम ने यहां आक्रमण किया इस समय यहां का शासक अचलदास खिची का पुत्र पाल्सहणी था, यह यहां से पलायन कर गया तथा दुर्ग पर महमूद खिलजी प्रथम का अधिकार हो गया तथा उसने इस दुर्ग का नाम मुस्तफाबाद कर दिया ।
❂ गागरोन दुर्ग का सम्बन्ध पौराणिक कथाओं में भगवान कृष्ण के पुरोहित गर्गचारी से जोड़ा जाता है, इस कारण इस दुर्ग का नाम गर्गराट पुर पड़ा ।
नोट :- इस दुर्ग को गागरोन नाम खिंची राजवंश के संस्थापक देवन सिंह की देन है ।
❂ सन् 1303 में यहां के शासक जैत सिंह को अल्लाउद्दीन खिलजी का सामना करना पड़ा । प्रसिद्ध सूफी संत हमीमुद्दीन चिश्ती इन्ही के समकालीन थे । ये खुरासन (काबुल) से यहां आये थे ।
दुर्ग की स्थापत्य कला
❂ गागरोन दुर्ग में संत पीपा की छतरी तथा मीठेशाह की दरगाह स्थित है ।
❂ कोटा के शासक जालिम सिंह द्वारा गागरोन दुर्ग के चारों ओर एक परकोटे जालिमकोट का निर्माण करवाया गया ।
❂ दुर्ग के पिछे गिधकराई स्थित है, माना जाता है कि इस स्थान पर राजनैतिक बन्दियों को मृत्युदण्ड दिया जाता था ।
नोट :- सन् 1567 में जब अकबर ने चित्तौड़ दुर्ग पर आक्रमण किया तो उससे पूर्व अकबर कुछ समय के लिये इस दुर्ग में ठहरे थे । इस दुर्ग में अबुल फजल के भाई फैजी की मूलाकात अकबर से हुई । अकबर ने यह दुर्ग बीकानेर के शासक राव कल्याणमल के पुत्र पृथ्वीराज राठौड़ को जागीर में दिया था । पृथ्वीराज राठौड़ एक प्रसिद्ध कवि, योद्धा व भक्त थे ।
रणथम्भौर दुर्ग
(Ranthambore Fort)

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❂ यह दुर्ग 7 पहाड़ियों से गिरा हुआ है ।
❂ यह दुर्गम घाटियों तथा बीहड़ वनों के मध्य स्थित है । इस दुर्ग में गिरी एवं वन दुर्ग दोनों ही विशेषताएँ है ।
❂ इस दुर्ग के निर्माण के बारे में प्रमाणिक जानकारी का अभाव है ।
❂ ऐसा माना जाता है, कि इस दुर्ग का निर्माण 8वीं सदी में अजमेर के चौहान शासकों द्वारा करवाया गया था
❂ इसका प्राचीन नाम अपभ्रंश था जिसका शाब्दिक अर्थ रण की घाटी में स्थित नगर ।
❂ थंभ उस पहाड़ी का नाम है जिस पर यह किला स्थित है । कालान्तर में इसका नाम अपभ्रंश होकर रणथम्भौर हो गया ।
❂ अबुल फजल ने इस दुर्ग के विषय में लिखा है। “अन्य सब दुर्ग नंगे है, जबकि यह बख्तर बन्द है ।”
❂ 1290 ई. में जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने इस दुर्ग पर आक्रमण किया लेकिन अधिकार करने में असफल हो जाने पर इस दुर्ग के विषय में कहा था कि “ऐसे दस दुर्गों को भी मैं मुसलमानों के एक बाल के बराबर भी नही समझता”।
❂ सन् 1301 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने इस दुर्ग पर आक्रमण किया तथा यहां का तत्कालीन शासक हम्मीर देव चौहान अल्लाउद्दीन खिलजी के साथ लड़ता हुआ मारा गया तथा हम्मीर की पत्नी रंगदेवी के नेतृत्व में राजपूत ललनाओं ने अपनी परम्परा का निर्वाह करते हुए जौहर किया ।
❂ अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर किले को जितने के लिए मगरिबी, अर्रादा तथा पाशेब का प्रयोग किया था।
❂ अलाउद्दीन खिलजी द्वारा रणथम्भोर दुर्ग को जित लेने के बाद अमीर खुसरो ने कहा था कि “आज कुफ्र का गढ़ इस्लाम का घर हो गया” ।
नोट :- राजस्थान के इतिहास का प्रथम साका था तथा राजस्थान का एकमात्र जल जौहर भी यहीं पर हुआ
❂ दुर्ग की स्थापत्य कला :- इस दुर्ग में हम्मीर द्वारा निर्मित 32 खम्भों की छतरी स्थित है जिसका निर्माण हम्मीर ने जैत्र सिंह (जयसिम्हा) के 32 वर्ष का शासन काल पूरा हो जाने के उपलक्ष्य में करवाया था ।
❂ इस दुर्ग में प्रसिद्ध पीर सद्बुद्धीन की दरगाह स्थित है ।
❂ रणथम्भौर दुर्ग में भारत वर्ष में प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी का मन्दिर है, जिसके मुख की पूजा की जाती है ।
❂ रणथम्भौर दुर्ग के प्रमुख दरवाजे – नौलखा दरवाजा, हाथीपोल, गणेशपोल, सूरजपोल और त्रिपोलिया है।
❂ इस दुर्ग का प्रथम दरवाजा नौलखा दरवाजा है ।
❂ इस दुर्ग के त्रिपोलिया दरवाजे को अंधेरी दरवाजा कहा जाता है ।
❂ इस दुर्ग में हम्मीर महल, हम्मीर कचहरी, कुत्ते की छतरी, गुप्त गंगा, लक्ष्मीनारायण मन्दिर, जौरा-भौरा महल, रानी महल, सुपारी महल, रणीहाड़ तालाब, जैन मन्दिर, जोगी महल, जौहर महल आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल है ।
❂ रियासत काल में अकबर ने यहाँ एक टकसाल बनवाई थी ।