राजस्थान की सभ्यताएँ
(Rajasthan’s Civilizations)

Rajasthan’s Civilizations

(1) कालीबंगा (2500 ई.पू- 1750 ई.पू, हनुमानगढ़) (Kalibanga)-
● कालीबंगा का तात्पर्य काली चूड़ियाँ है । यह घग्घर सरस्वती नदी के पेटे में विकसित हुई है । इसकी खोज 1952 में अम्लानन्द घोष द्वारा (A.N. Ghosh) की गई । इसके उत्खनन्कर्ता बृजवासी लाल एवं बी के थापर ने 1961 में की।
नोट :- अग्नि वेदिकाएं सम्पूर्ण सिन्धुघाटी क्षेत्र में कालीबंगा के अतिरिक्त मात्र लोथल से प्राप्त हुई है ।
(2) आहड़- (उदयपुर) (4000 ई.पू- 1200 ई.पू) (Aahad)–
● आहड़ का प्राचीन नाम ताम्रवती था, वर्तमान में इसे धुलकोट (आघाटपुर) कहा जाता है ।
● खोजकर्ता :- 1954 में अक्षय कीर्तिव्यास व उत्खनन्कर्ता रतन चन्द्र अग्रवाल व हँसमुख सांखलिया ने 1956 में किया।
● यह ग्रामीण सभ्यता थी । इसे ताम्रवती नगरी भी कहते है। यहाँ गेहूँ के साक्ष्य भी मिले है।
● यहाँ मृदू भाड मिले है जिनकों ‘गोरे’ या ‘कोटे’ कहते है।
● यहाँ के लोगो को धार्मिक ज्ञान था।
(3) गणेश्वर सभ्यता (सीकर जिले में नीम का थाना स्थान) (Ganeshvar Sabhyata)-
(4) बैराठ- (जयपुर) (Bairath)-
● 1837 में यहां केप्टन बर्ट द्वारा उत्खन्न कार्य किया गया इस दौरान बीजक पहाड़ी से सम्राट अशोक का शिलालेख प्राप्त हुआ ।
● सन् 1871-72 में यहां कार्लाइल द्वारा उत्खनन कार्य किया गया इस दौरान यहां अशोक का एक और शिलालेख प्राप्त हुआ
● नदी:- बाणगंगा/ अर्जुन की गंगा (पाण्डवों ने अज्ञातवास बिताया)
● मोर्यकाल एवं गुप्तकालीन सभ्यताओं का केन्द्र। यहाँ एक भाब्रू शिलालेख मिला है जो अशोक से संबंधित है। इससे सिद्ध होता है कि अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया। वर्तमान में लखनऊ संग्रहालय में रखा है।
● टिले महादेवजी, भीमजी, बीजक की पहाड़ी, गणेश की डूंगरी।
● यहाँ मत्स्य प्रदेश की राजधानी थी, यहाँ 36 मुद्राएँ मिली हैं जिनमें Indo-Greek यूनानी व पंचमार्क प्रसिद्ध/ प्रमुख है।
● यहाँ पाण्डवों ने अपना अज्ञातवास बिताया था ।
● दयाराम साहनी के अनुसार हूण शासक मिहिरकुल ने बैराठ को ध्वस्त किया था । यहां से अकबर के काल का जैन मन्दिर मिला है ।
● चीनी यात्री ह्वेनसांग बैराठ भी आया था, उसने बैराठ के लिये “पारपात्र’ शब्द का प्रयोग किया है ।
(5) बागौर – (भीलवाड़ा) (Bagor)-
● डॉ. वीरेन्द्र नाथ मिश्र व डॉ. एल.एस. लैशनी के नेतृत्व में पूना विश्वविद्यालय एवं राज्य सरकार के पुरातत्व विभाग के सहयोग से उत्खनन कार्य किया गया ।
● 3000 ई.पूर्व की सभ्यता है । यह कोठारी नदी के किनारे स्थित है ।
● यहां उत्तर पाषाण कालीन सभ्यता के अवशेष मिलते है । यहां के निवासी युद्ध, शिकार, कृषि प्रेमी तथा माँसाहारी थे।
● यहां उत्खनन में बोतल के आकार के बर्तन एवं हाथ व कान के शीशे के गहने प्राप्त हुए है |
● बागोर को आदिम संस्कृति के संग्रहालय के नाम से जाना जाता है । यहां से भारत के पशुपालन के प्राचीनतम अवशेष मिले है ।
● यहां से सर्वाधिक 14 प्रकार की कृषि किये जाने के अवशेष मिले है ।
(6) बालाथल – (वल्लभनगर, उदयपुर) (Balathal)-
● सन् 1993 में वी.एन. मिश्र के नेतृत्व में उत्खनन कार्य किया गया ।
● यह सभ्यता 3000 ई.पू. से 2500 ई.पू. तक मौजूद थी । यहां उत्खनन में बड़ा भवन, दुर्ग जैसी संरचना, साण्ड व कुत्ते की मुर्तियों के अवशेष तथा तांबे के आभूषण मिले है |
● बालाथल राज्य में बैराठ के उपरान्त दुसरा ऐसा स्थान है जहां से कपड़ा प्राप्त हुआ है । यहां से लोहा गलाने की पाँच भट्टीयां मिली है ।
(7) नोह – (भरतपुर) (Noh Sabhyata)-
● रूपारेल नदी के किनारे स्थित 3000 ई.पू. की लोहयुगीन सभ्यता है । यहां कुषाणकालीन व मौर्यकालीन अवशेष प्राप्त हुए है ।
● अचित्रित मृदभांड़ व कुषाण कालीन ईंटें प्राप्त हुई जिन पर पक्षी का चित्र अंकित है ।
● यहां से “यक्षबाबा” (जाखबाबा) की प्रतिमा मिली है । यहां से एक मृदपात्र पर स्वास्तिक का चिह्न मिला है ।
(8) रंगमहल – (हनुमानगढ़) (Rangmahal)-
● सन् 1952-54 में डॉ हन्नारीड़ के निर्देशन में स्वीडिश दल द्वारा उत्खनन कार्य कराया गया ।
● यहां कुषाणकालीन एवं पूर्व गुप्तकालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए है।
● यह घग्घर नदी के किनारे 100 ई.पू. से 300 ई.पू. तक की सभ्यता है । यहां विशिष्ट मृणमूर्तियाँ (गाँधार शैली), घण्टाकार, मृदपात्र, पंचमाक्र व कनिष्क कालीन मुद्राएँ, टोटीदार घड़े इत्यादी प्राप्त हुए ।
● रंगमहल से प्राप्त फलक पर गोवर्धनकारी मुछों सहित श्रीकृष्ण का अंकन मिलता है । यहां से बच्चों के खेलने की छोटी पहियेदार गाड़ियाँ मिली है ।
(9) नगरी (माध्यमिका) – (चित्तौड़गढ़) (Nagaree)-
● यहां डॉ. भण्डारकर ने 1904 में तथा केन्द्रीय पुरातत्व विभाग ने 1962 में उत्खनन कार्य कराया ।
● यहां शिवि जनपद के सिक्के तथा गुप्त कालीन कला के अवशेष मिले है।
● पणीनी में अपने ग्रन्थ “अष्टाध्ययायी’ में नगरी को मध्यमिका नाम से उल्लेखित किया है । नगरी राज्य में खोदा गया प्रथम स्थल है । नगरी से देश के प्राचीनतम वैष्णव मन्दिर के भग्नावशेष मिले है । यहां से चार चक्राकार कुए भी मिले है ।
(10) सुनारी – (खेतड़ी, झुन्झुनु) (Sunaree)-
● यहां लौहयुगीन सभ्यता के अवशेष मिले है ।
● यहां से लौहा गलाने की भट्टी, लौहे के अस्त्र-शस्त्र व बर्तन आदि प्राप्त हुए है ।
● यहां के निवासी चावल तथा माँस खाते थे तथा घोड़ों का प्रयोग रथ खिचने में करते थे ।
● यह स्थल कांतली नदी के तट पर झुन्झनु जिले में स्थित है । यहां से लोहे का एक प्याला भी मिला है, जो सम्पूर्ण भारत का एकमात्र प्याला है ।
(11) रैढ़ – (निवाई, टोंक) (Raid)-
● यहां के.एन. पुरी द्वारा उत्खनन कार्य करवाया गया ।
● उत्खनन में यहां लौह का विशाल भण्डार प्राप्त हुआ है । यह प्राचीन भारत का टाटा नगर कहलाता है ।
● यह स्थल टोंक जिले में ढील नदी के तट पर स्थित है ।
(12) तिलवाड़ा – (बाड़मेर) (Tilwada)-
● यह लूनी नदी के किनारे स्थित है ।
● यहां उत्खनन में 500 ई.पू. से 200 ईपू. तक की सभ्यताओं के अवशेष मिले है |
● यहां से मानव की आखेट प्रकृति का पता लगता है ।
(13) जोधपुरा – (जयपुर) (Jodhpura)-
● यहां शुंग व कुषाण कालीन सभ्यता के अवशेष तथा लौह उपकरण बनाने की भट्टियाँ मिली है ।
● यह स्थल साबी नदी के तट पर स्थित है ।
सभ्यताओं से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्य:―
● बूंदी जिले में छाजा नदी के तट पर गरदड़ा नामक स्थान से बर्ड राईडर रॉक पेन्टिंग (Bird rider rock painting) प्राप्त हुई है । यह भारत की प्राचीनतम बर्ड राईडर रॉक पेन्टिंग है ।
● गरदड़ा (बूंदी) अपने शैल चित्रों के लिये प्रसिद्ध है ।
● कुंडा एवं ओला नामक पुरातात्विक स्थल जैसलमेर जिले में स्थित है ।
● नगर (टोंक) को प्राचीन काल में मालव नगर के नाम से जाना जाता था । वर्तमान में नगर सभ्यता को खेडा सभ्यता भी कहा जाता है । यहां से प्राप्त मुर्तियों पर कामदेव-रति का भव्य अंकन मिलता है |
● पिण्ड-पाण्डलिया स्थल का सम्बन्ध चित्तौड़गढ़ से है, जबकि कोल-माहैली स्थल सवाई माधोपुर में स्थित है |
● बुढ़ा पुष्कर स्थल अजमेर में है, जबकि मल्लाह (भरतपुर) से मछली पकड़ने का “हारपून” नामक उपकरण मिला है ।
● बीकानेर जिले में स्थित सौंथी को कालीबंगा प्रथम के नाम से जाना जाता है ।
● अब तक की गई खुदाई में केवल ओझियाना (भीलवाड़ा) से ही गाय मिली है |
● बरोर सभ्यता सरस्वती नदी के तट पर (वर्तमान गंगानगर जिले में) स्थित है ।
● तिपहिया स्थल कोटा में, डड़ीकर अलवर में, कोटड़ा झालावाड़ में, ईसवाल उदयपुर में, नलियासर जयपुर में राज्य के प्रमुख पुरातात्विक स्थल है ।
● बांका गाँव (भीलवाड़ा) में राज्य की प्रथम अलंकृत गुफा प्राप्त हुई है |
● परिवार एवं सानु (जैसलमेर) से क्रीटेशियस काल के चुहे के दांत के अवशेष मिले है जो स्तनधारी जीव के विश्व के प्राचीनतम अवशेष है ।
● बागोर (भीलवाड़ा) से भारत के पशुपालन के प्राचीनतम अवशेष मिले है । बागोर कोठारी नदी के तट पर अवस्थित है।
● आहड़ सभ्यता के निवासीयों का ईरान से सम्बन्ध होने के संकेत मिलते है ।
● मुहम्मदाबाद उदयपुर का, मोमीनाबाद आमेर का, महमेदाबाद सांचौर का नाम था ।