राजस्थान के लोक देवता
Rajasthan ke Lok Devta

Tejaji-Veer-kallaji-DevnarayanJi

तेजाजी
(Tejaji)
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❇️ तेजाजी को गायों के मुक्ति दाता तथा सांपों के देवता के रूप में पूजा जाता है । इन्होने लाछा गुजरी (हीरा गुजरी) की गायों को पनेर के मीणाओं से छुड़ाया था ।
❇️ तेजाजी के पूजा स्थल को थान कहा जाता है । तेजाजी के भोपे को घोडला कहा जाता है ।
❇️ तेजाजी के प्रतीक के रूप में तलवार धारी घुडसवार योद्धा तथा सर्प उकेरा हुआ मूर्ति तथा जीभ को सर्पदंश करते हुए दिखाया जाता है । तेजाजी को कृषि कार्यो का उपकारक देवता तथा काला और बाला का देवता कहा जाता है। तेजाजी की एक घोडी थी जिसका नाम लीलण था । जाटों में तेजाजी की सर्वाधिक मान्यता है ।
नोट :- रामराज नाहटा ने तेजाजी के जीवन पर राजस्थानी भाषा में वीर तेजाजी नामक फिल्म बनाई है ।
तेजाजी के प्रमुख मन्दिर
❇️ सेन्दरिया :- ब्यावर अजमेर में स्थित है ।
❇️ ब्यावर में ।
❇️ भावता – अजमेर जिले में स्थित है । इस स्थान पर सुरसरा से जोत मंगवाकर यहां तेजाजी की संगमरमर की मूर्ति स्थापित की गई है ।
❇️ सुरसरा :- इस स्थान पर तेजाजी को नाग ने डसा था । जबकि उनकी मृत्यु सेन्दिरया (अजमेर) नामक स्थान पर हुई थी ।
देवनारायण जी
(Devnarayan Ji)
❇️ जन्म माघ शुक्ल 6 सम्वत् 1243 को भीलवाड़ा जिले के आसीन्द कस्बे के समीप मालसेरी नामक गाँव में हुआ।
❇️ देवनारायण जी के बचपन का नाम उदय सिंह था ।
❇️ पिता का नाम सवाईभोज (बगड़ावत या नागवंशीय गुर्जर) था, तथा माता का नाम सेडू या सोढ़ी (ये देवास मध्यप्रदेश की निवासी) था। इनकी शिक्षा देवास में हुई ।
❇️ इनका विवाह धार (मध्यप्रदेश) के शासक जयसिंह की पुत्री पीपल दे के साथ हुआ ।
❇️ इनके भाई का नाम महेन्दू था ।
❇️ गुर्जर जाती इन्हे विष्णु का अवतार मानती है । इनकी घोड़ी का नाम लीला था ।
❇️ देवनारायण जी ने गर्जर जाती को भिनाय के राणा को मारकर कष्टों से छुटकारा दिलाया था ।
❇️ गुर्जर जाती देवनारायण जी को अपना लोकदेवता मानती है ।
❇️ देवनारायण जी की मृत्यु अजमेर जिले के ब्यावर कस्बे के देवमाली नामक स्थान पर हुई ।
नोट :- सन् 1992 में देवनारायण की फड़ पर डाक टिकट जारी किया गया ।
प्रमुख मन्दिर
❇️ देवमाली (अजमेर)
❇️ देवधाम जोधपूरिया (टोंक) (बनास, मांशी और बांड़ी के त्रिवेणी संगम पर)
❇️ सवाई भोज मन्दिर – आसीन्द (भीलवाड़ा)
सर्वाधिक लोकप्रिय फड़ :- पाबूजी । (सर्वाधिक पूरानी फड़)
सर्वाधिक लम्बी फड़ :- देवनारायण जी ।
बिना वाद्ययंत्र की सहायता से वाची जाने वाली फड़ :- रामदला-कृष्णदला की फड़ ।
वीर कल्लाजी
(Veer Kallaji)
❇️ इनका जन्म 1601 में मेड़ता में हुआ । इनके पिता का नाम आस सिंह राठौड़ व इनकी बुआ का नाम मीरा बाई था ।
❇️ माना जाता है कि इनकी पाँच वर्ष की उम्र में भैरव से साक्षात्कार हुआ । इन्हे सिद्धियां तथा जड़ी-बूटियों का ज्ञान प्राप्त था ।
❇️ कल्ला जी को चार हाथों वाले तथा दो सिर वाले लोकदेवता के रूप में माना जाता है ।
❇️ प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल अष्टमी को इनका मेला चित्तौड़गढ़ में आयोजित होता है । इनकी मुख्य पीठ रनेला में है ।
मल्लीनाथ जी
(Mallinath Ji)
❇️ इनका जन्म 1358 में जोधपुर (मारवाड़) में हुआ इनके पिता का नाम राव सलखा था व माता का नाम जीणी दे था। कान्हड़दे इनके ताऊ थे । इन्होने 1378 मे फिरोजशाह तुगलक तथा मालवा के सुबेदार निजामुद्दीन की सम्मिलित सेनाओं को पराजित किया तथा लोगों की सेना से रक्षा की । जिसके लिये मारवाड़ में निम्न कहावत प्रसिद्ध है – “तेरह तुंगा भांगिया, मोल सलखाणी’ ।
❇️ मल्लीनाथ जी ने अपनी रानी रूपादे की प्रेरणा से 1389 ईस्वी में उगमसी भाटी से योगसाधना की दीक्षा ग्रहण की थी।
❇️ मल्लीनाथ जी की समाधि बाडमेर जिले के तिलवाड़ा नामक स्थान पर लूनी नदी के तट पर स्थित है ।
❇️ मल्लीनाथ जी सिद्ध पुरूष शूरवीर तथा चमत्कारिक योद्धा के रूप में पूजे जाते थे ।