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रामदेवजी-पाबूजी-गोगाजी |
(Ramdevji)
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Lord of lord of Rajasthan-
(Pabooji)
❋ जन्म विक्रमी संवत् 1313 में जोधपुर जिले में फलौदी के पास कोलू नामक गाँव में हुआ ।
❋ पिता का नाम धान्धल जी राठौड़ था, माता का नाम कमला दे था ।
❋ इन्हे ऊँटों के देवता के रूप में पूजा जाता है ।
❋ पाबूजी को लक्ष्मण का अवतार भी मानते है ।
❋ पाबूजी मारवाड़ के राठौड़ वंश के आदि पुरूष राव सिंहा के वंशज थे । इन्हे हड़फाड़ पाबूजी के नाम से भी जाना जाता है ।
❋ पाबूजी ने गौरक्षा के लिये अपने प्राण देकर अपनी प्रतिज्ञा को पूरा किया।
❋ पाबूजी वर्तमान में राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात तथा महाराष्ट्र में भी लोकदेवता के रूप में पूजे जाते है ।
❋ 24 वर्ष की आयु में देवल चारणी की गायों को अपने बहनोई जिन्दराव खींची से छुड़ाते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए ।
❋ केसर कालमी देवल चारणी की घोड़ी थी, जिन राव खींची ने भी देवल चारणी की घोड़ी केसर कालमी को प्राप्त करने का प्रयास किया था ।
❋ ये राजस्थान के एकमात्र ऐसे लोकदेवता है जो गायों की रक्षा हेतु शादी के फेरों को बीच में छोड़कर चले गये थे ।
❋ पाबूजी को ऊटों के देवता तथा प्लेग के रक्षक के रूप में भी पूजा जाता है ।
❋ पाबूजी की फड़ सर्वाधिक लोकप्रिय फड़ है । भीलवाड़ में पुर गाँव के निवासी धुलची नामक चितेरे ने सर्वप्रथम पाबूजी की फड़ का निर्माण किया। पाबूजी की फड़ गाथा की रचना कार देवल चारणी को माना जाता है ।
❋ पाबूजी की फड़ को रेबारी जाती के लोग गाकर सुनाते है ।
❋ पाबूजी के चार सरदार देमा, चान्दा, हरमल रायका तथा सलजी सोलंकी थे ।
❋ रामदेवजी, पाबूजी, गोगाजी, हडबूजी, मेहाजी को राजस्थान में पंचपीर के नाम से पूजा जाता है।
Lord of lord of Rajasthan-
(Gogaji)
❋ जन्म विक्रमी संवत् 1003 में चुरू जिले के ददरेवा नामक स्थान पर हुआ।
❋ पिता का नाम चौहान वंशीय जावर सिंह व माता का नाम बाछल था (गोरखनाथ के आशीर्वाद से गोगाजी का जन्म हुआ था)
❋ गोगाजी का विवाह कोलू के शासक की पुत्री तथा पाबूजी की भतीजी केलम दे के साथ हुआ ।
❋ गोगाजी को सांपों के देवता के रूप में पूजा जाता है ।
❋ गोगाजी को जाहर पीर (जीवीत पीर) भी कहा जाता है ।
❋ मुसलमान इनकी गोगा पीर के रूप में तथा हिन्दू इनकी नागराज के रूप में पूजा करते है ।
❋ गोगाजी अफगानिस्तान के शाह द्वारा गोधन को चुराने पर उसे हरा कर गौरक्षा की तथा उन्हें वापस ले आये। इसलिये इन्हे गौरक्षक भी कहा जाता है । दिल्ली के बादशाह महमूद गजनवी के साथ युद्ध मे अपनी चपलता के
साथ उसे हर समय दिखाई देते रहे। इसी कारण महमूद ने इन्हे जाहर पीर कहा ।
❋ गोगाजी के पूजास्थल को मेड़ी कहा जाता है । यहां उनका जन्म हुआ था।
❋ जबकि मृत्यु स्थान को गोगामेड़ी कहा जाता है । गोगामेड़ी हनुमानगढ़ में स्थित है । गोगा मेड़ी को धड़मेड़ी भी कहा जाता है । गोगामेड़ी के प्रवेश द्वार पर बिस्मिल्ला लिखा हुआ है जबकि मुख्य मन्दिर पर ओम लिखा हुआ है । मेड़ी का आकार मकबरा नुमा है । जिसका निर्माण गंगासिंह द्वारा करवाया गया था ।
❋ गोगाजी का प्रतीक के रूप में अश्वारोही हाथ में भाला लिये हुए होता है।
❋ ददरेवा में प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण नवमी से शुक्ल नवमी तक गोगाजी का मेला लगता है । माना जाता है कि ददरेवा तालाब की मिट्टी का लेप करने पर साँप का जहर उतर जाता है ।
❋ किसान वर्षा के बाद हल जोतने से पहले हल व हाली को राखी बांधते है जिसे “गोगा राखड़ी” कहा जाता है ।
❋ गोगाजी की ओल्डी (झोपड़ी) सांचोर नामक स्थान पर स्थित है ।
❋ गोगाजी का थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होता है । कायमखानी मुसलमान इन्हे अपना पूर्वज मानते है।
❋ गोगाजी के बारे में कहा जाता है कि गाँव-गाँव खेजड़ी, गाँव-गाँव गोगो ।