✔️ जालौर के चौहान वंश का संस्थापक नाडोल (पाली) के चौहान शाखा के अल्हण का पुत्र कीर्तिपाल था जिसने 1181 में परमारों को पराजित करके जालौर के चौहान वंश की नीव रखी । कीर्तिपाल को कीतू भी कहा जाता है।
✔️ कीर्तिपाल के बाद समर सिह जालौर का शासक बना । समर सिंह इस समय दिल्ली सल्तनत के आक्रमण से बचा रहा ।
✔️ सन् 1205 में समर सिंह का पुत्र उदय सिंह शासक बना । उदय सिंह के काल में 1228 में इल्तुतमिश ने जालौर पर असफल आक्रमण किया ।
✔️ सन् 1254 में नासिरउद्धीन महमूद के प्रधानमंत्री बलबन ने जालौर पर आक्रमण किया ।
✔️ सन् 1257 में उदय सिंह का पुत्र चाचिगदेव शासक बना । चाचिगदेव दिल्ली सल्तनत के नासिरूद्धीन महमूद तथा बलबन के समकालीन था । चाचिगदेव इनके आक्रमण से बचा रहा ।
✔️ चाचिगदेव के पश्चात 1282 में इसका पुत्र सामन्त सिंह चौहान वंश का अगला उत्तराधिकारी हुआ । सामन्त सिंह के काल में अल्लाउद्दीन खिलजी की सेनाओं ने जालौर के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया । सामन्त सिह ने परस्तिथियों को मध्य नजर रखते हुए अपने जीते जी अपने पुत्र कान्हडदेव को शासन सुर्पद कर दिया ।।
कान्हडदेव और अल्लाउद्दीन खिलजी (Kanhardev and Alauddin Khilji)
✔️ सन् 1299 में जब अल्लाउद्दीन खिलजी की सेनाओं ने गुजरात पर आक्रमण किया तो वहां से लूटे हुए धन के बँटवारे को लेकर जालौर की सीमा में मंगोल सैनिक व अल्लाउद्दीन खिलजी के सेनापति उलगू खाँ के मध्य विवाद हो गया ऐसे समय में कान्हडदेव ने अल्लाउद्दीन खिलजी की सेनाओं पर आक्रमण करके लूट का कुछ भाग हथिया लिया | ऐसा भी माना जाता है कि कान्हडदेव ने गुजरात के सोमनाथ मन्दिर से लाये हुए मूर्ति के टुकडों को अल्लाउद्दीन खिलजी के सैनिकों से छिन कर मारवाड़ में स्थापित करवाया ।
✔️ अल्लाउद्दीन खिलजी ने कान्हडदेव से मिली पराजय का बदला लेने हेतु 1305 में एन-उल-मूलक-मूलतानी के नेतृत्व में सेनाऐ भेजी मूलतानी के समझाने पर कान्हडदेव ने अल्लाउद्दीन खिलजी की अधीनता स्वीकार ली । तथा कान्हडदेव अल्लाउद्दीन खिलजी के दरबार में चला गया ।
✔️ कान्हडदेव द्वारा अल्लाउद्दीन खिलजी की अधीनता स्वीकार कर लेने के उपरान्त अल्लाउद्दीन खिलजी ने एक दिन बडे गर्व से कहा कि “कोई भी ऐसा हिन्दू नरेश नही जो मेरे सामने टिक पाये” । अतः कान्हडदेव अल्लाउद्दीन खिलजी की इस बात से नाराज होकर बिना बताये जालौर आ गया । इतिहासकार के.एस. लाल इस सम्पूर्ण घटना को अस्वीकार करते है, जबकि डॉ. गोपीनाथ शर्मा इस घटना में सत्यता का कुछ अंश विद्यमान बताते है ।
✔️ मुहणोंत नैणसी ने “नैणसी री ख्यात“ में अल्लाउद्दीन खिलजी के जालौर पर आक्रमण का एक अन्य कारण बताते हुए लिखा है कि “कान्हडदेव का पुत्र वीरमदेव अल्लाउद्दीन खिलजी के दरबार में रहता था तथा अल्लाउद्दीन खिलजी की पुत्री फिरोजा वीरमदेव से प्रेम करती थी, अल्लाउद्दीन खिलजी के समझाने पर भी फिरोजा नही मानी तथा वीरमदेव से विवाह करने के लिये अड़ी रही”। वीरमदेव ने फिरोजा से विवाह करने से इनकार कर दिया तथा जालौर आ गया ।
✔️ फिरोजा स्वयं जालौर आई तथा कान्हडदेव ने उसे उचित सम्मान दिया परन्तु कान्हडदेव ने अपने पुत्र वीरमदेव से फिरोजा के विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया अत: फिरोजा दिल्ली लोट आई ।
✔️ फिरोजा की धाय “गुल विहस्त” ने जालौर पर आक्रमण किया तथा राजपूत सेनाए इस समय पराजित हुई। ऐसा माना जाता है कि वीरमदेव इसी समय लड़ता हुआ मारा गया । वीरमदेव का सिर काट कर दिल्ली ले जाया गया । तथा फिरोजा को दिया गया । फिरोजा ने विधिवत रूप से अपने प्रेमी के शव का अंतिम दाह संस्कार किया और अन्त में स्वयं ने भी यमुना नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली ।
सिवाना अभियान (Sivan Abhiyan)
✔️ सिवाना नामक स्थान वर्तमान में बाडमेर जिले में स्थित है । सिवाना दुर्ग का रक्षक उस समय (जब अल्लाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया तब) सातलदेव था, अल्लाउद्दीन खिलजी ने कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में सिवाना के विरूद्ध सेनाए भेजी । सिवाना अभियान के अन्तर्गत अल्लाउद्दीन खिलजी का नाहर खाँ नामक सेनापति मारा गया था।
✔️ अल्लाउद्दीन खिलजी की सेना ने राजाद्रोही ने भावले की सहायता से जलकुण्ड में गौ रक्त मिलवा दिया जिससे कुण्ड का पानी दूषित हो गया । अन्त में दुर्ग का रक्षक सातलदेव युद्ध में लडता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ तथा राजपूत रानियों ने जौहर किया।
नोट :- अल्लाउद्दीन खिलजी ने सिवाना दुर्ग का नाम बदलकर खैराबाद कर दिया।
✔️ सिवाना विजय के उपरान्त अल्लाउद्दीन खिलजी दिल्ली लौट गया तथा उसने मारवाड़ को उजाडने का आदेश दिया। अल्लाउद्दीन खिलजी की सेनाओं ने बाडमेर तथा भीनमाल को लूटा, तथा सांचौर में स्थित भगवान महावीर के मन्दिर को नष्ट किया ।
✔️ अल्लाउद्दीन खिलजी ने मलिक नायब के नेतृत्व में कान्हड़देव के विरूद्ध सेनाएँ भेजी इस दौरान कान्हड़देव के भाई मालदेव सोनगरा ने अल्लाउद्दीन खिलजी सेनाओं को परास्त किया इस युद्ध को मलकाना युद्ध के नाम से जाना जाता है । इस दौरान अल्लाउद्दीन खिलजी का एक सैनिक शम्स खाँ को गिरफ्तार कर लिया गया ।
✔️ अल्लाउद्दीन खिलजी को शम्स खाँ की गिरफ्तारी तथा मुस्लिम सेनाओं की पराजय की सुचना पर स्वयं एक विशाल सेना लेकर जालौर आया ।
✔️ अल्लाउद्दीन खिलजी ने अपने सेनापति कमालुद्दीन गुर्ग के नेतृत्व में जालौर पर आक्रमण का शाही आदेश दिया ।
✔️ एक लम्बे समय तक दुर्ग का घेरा डालने के उपरान्त भी अल्लाउद्दीन खिलजी उस दुर्ग पद अधिकार नही कर सका। एक दहिया राजपूत सरदार बीका को अपनी ओर मिला लिया । बीका के विश्वासघात के कारण अल्लाउद्दीन खिलजी सेना दुर्ग में प्रवेश कर गई ।
✔️ कान्हड़देव तथा उसका पुत्र वीरमदेव युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। सन् 1311-12 में इस दुर्ग पर अल्लाउद्दीन खिलजी का अधिकार हो गया व अल्लाउद्दीन खिलजी ने जालौर दुर्ग का नाम बदलकर जलालाबाद कर दिया । इस दौरान कान्हड़देव के परिवार का एकमात्र सदस्य मालदेव सोनगरा जीवित बचा जिसे अल्लाउद्दीन खिलजी ने सन् 1313 में चित्तौड़गढ़ दुर्ग का प्रशासक नियुक्त किया ।
नोट :- अखैराज का दरबारी कवि पद्मनाभ था जिसने “कान्हड़देव प्रबंध” नामक ग्रन्थ लिखा है ।