वायुमण्डलीय दाब एवं पवने
वायुमण्डलीय दाब पृथ्वी पर हवाओ का दबाव है, जो पृथ्वी के धरातल पर पृथ्वी की गुरूत्वाकर्षण शक्ति के कारण टिका है व अपने भार के कारण पृथ्वी पर दबाव डालता है।
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वायुमंडल का सामान्य परिचय |
☆ वायुमण्डलीय दबाव का अर्थ है किसी स्थान तथा समय पर वहां की हवा के स्तंभ का भार ।
☆ इसे बैरोमीटर में मापा जाता है।
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☆ जलवायु वैज्ञानिको ने इसके लिए मिलीबार को इकाई माना है। एक मिलीबार एक वर्ग सेंटीमीटर पर एक ग्राम भार का बल है।
☆ पारा के 76 सेमी. उंचे स्तभं का वायुदाब 1013.25 मिलीबार होता है जो समुन्द्रतल पर वायुदाब है।
☆ बैरोमीटर में तेजी से पठन का नीचे जाना तुफान का संकेत देती है।
☆ बैरोमीटर के पठन का तेजी से गिरना व बाद में धीरे धीरे बढना वर्षा का द्योतक है।
☆ बैरोमीटर मे पठन का तेजी से बढना प्रति चक्रवाती और साफ मौसम का संकेत देता है।
☆ वायुमण्डलीय दाब के वितरण को समदाब रेखाओ (आइसोबार) से दर्शाया जाता है।
☆ समदाब रेखाओ की परस्पर दूरियां वायुदाब में अंतर की दिशा और उसकी दर को दर्शाती है, जिसे दाब प्रवणता कहते है। इसे बैरोमीट्रिक ढाल
भी कहा जाता है।
☆ वायुदाब में अंतर के कारण हवा में क्षैतिज गति आती है, इस क्षैतिज गति को पवन कहते है। पवन उष्मा व आद्रता को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करते है और वृष्टि होने मे मदद करते है। इसलिए वायुमण्डलीय दाब को मौसम के पुर्वानुमान का एक महत्वपूर्ण सूचक माना
जाता है।
☆ विषुवत रेखा के निकट वायुमण्डलीय दशाए शांत होने के कारण इस कटिबंध (0-5° उतरी व दक्षिणी अक्षांश) को डोलड्रम या शांत कटिबंध
कहते है।
☆ विषुवतीय निम्नदाब क्षेत्र के उपर उठी हवाएं उपरी वायुमण्डल में ध्रुवो की ओर प्रवाहित होती है। परंतु पृथ्वी के घूर्णन बल के कारण ये पूर्व की
ओर विक्षेपित होने लगती है। इस बल को सर्वप्रथम फ्रांसीसी वैज्ञानिक कॉरिऑलिस ने बताया था, इसी कारण इस बल का नाम कॉरिऑलिस बल पड़ा।
☆ 35° उतरी व दक्षिणी अक्षांशो को अश्व अक्षांश भी कहा जाता है। क्योकि शांत वायुमण्डलीय दशाओ के कारण यहां काफी कठिनाईयो का सामना
करना पड़ता था।
☆ कॉरिऑलिस बल के प्रभाव के कारण उतरी गोलार्द्ध की पवन अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध की पवन अपनी बांयी ओर विक्षेपित हो जाती है। चुंकि इस विशेषता को फेरल नामक फ्रांसीसी वैज्ञानिक के द्वारा सिद्ध किया जा चुका है इसलिए इसे फेरल का नियम भी कहा जाता है।
☆ उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंधो से विषुवतीय निम्न वायुदाब की ओर दोनो गोलार्दो में निरंतर बहने वाली हवाएं व्यापारिक पवने कहलाती है। ये सदैव एक निर्दिष्ट पथ पर चलती है।
☆ उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंध से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंध की ओर चलने वाली पश्चिमी हवाओ को पछुआ पवने कहा जाता है। इनका सर्वश्रेष्ठ विकास दक्षिणी गोलार्द्ध में 40°-65° अक्षांशो के मध्य होता है। इन्हे 40° अक्षांश पर गरजती चालीसा, 50° पर प्रचण्ड पचासा तथा 60° पर चीखता साठा के नाम से जाना जाता है। ये नाम नाविको द्वारा दिए गए है।
☆ ध्रुवीय उच्च वायुदाब से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की ओर बहने वाली पवने ध्रुवीय पवने कहलाती है। उतरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उतर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में इनकी दिशा दक्षिण पूर्व से उतर पश्चिम की ओर होती है। धरातल की वे सभी पवने जिनकी दशा में मौसम के अनुसार पूर्ण परिवर्तन आ जाता है, मानसूनी पवने कहलाती है।
☆ दिन में स्थल की गर्म वायू जब उपर उठती है तो समुद्र की आद्र तथा ठंडी वायु उस रिक्त स्थान को भरने के लिए स्थल की ओर चलती है, इसे
समुद्र समीर कहा जाता है।
☆ रात्रि में स्थल भाग के ठण्डा होने के कारण वायु स्थल से समुद्र की ओर चलती है, इसे स्थल समीर कहा जाता है।
☆ जेट स्ट्रीम क्षोभसीमा के निकट चलने वाली अत्यधिक तीव्र गति की क्षैतिज पवने है, जो 150 किमी चौड़ी व 2 से 3 किमी मोटी एक संक्रमण पेटी में सक्रिय रहती है। इसके चार प्रकार है :-
1. ध्रुवीय रात्रि जेट स्ट्रीम
2. ध्रुवीय वाताग्री जेट स्ट्रीम
3. उपोष्ण पछुआ जेट
4. उष्ण कटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम (ये भारत में मानसून उत्पति के लिए उतरदायी मानी जाती है)
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विश्व के वायुदाब कटिबंध |
पवनों के प्रकार
(1) स्थायी पवने – इनकी दिशा वर्ष भर अपरिवर्तित रहती है इसलिए इन्हे सनातन/प्रचलित/गृहीय / भूमण्डलीय पवने कहा जाता है।
इनके तीन प्रकार है :-
1. व्यापारिक पवने
2. पछुआ पवने
3. ध्रुवीय पवने
(2) सामयिक पवने – जो पवने समय व मौसम के अनुसार अपनी दिशा में परिवर्तन करती है, सामयिक पवने कहलाती है।
इनके तीन पकार है :-
1. मानसूनी पवन
2. जल व स्थल समीर
3. पर्वत व घाटी समीर
(3) स्थानीय पवने – ये किसी भी स्थान विशेष पर वायुदाब या तापमान में भिन्नता के कारण प्रकट होती है।
इनके दो प्रकार माने गए है
1. गर्म स्थानीय पवन
2. ठण्डी स्थनीय पवन
स्थानीय पवने
गर्म स्थानीय पवने
☆ चिनूक – इसका अर्थ होता है हिमभक्षी जो रेड इंडियनो की भाषा से ग्रहित शब्द है। यह रॉकी पर्वत के पूर्वी ढालो के सहारे चलने वाली गर्म तथा शुष्क हवा है। इसके प्रभाव से बर्फ पिघल जाती है एवं शीतकाल में भी हरी भरी घास उग जाती है।
☆ फान – यह चिनूक के समान ही आलम्पस पर्वत के उतरी ढाल के सहारे उतरने वाली गर्म व शुष्क हवा है। इसका प्रभाव स्विट्जरलैण्ड में सर्वाधिक होता है। यह अंगुर के लिए उपयोगी होती है।
☆ लू – यह उतर भारत में गर्मीयो में उतर पश्चिम तथा पश्चिम से पूर्व दिशा में चलने वाली प्रचंड व शुष्क हवा है, जिसे तापलहरी भी कहा जाता है।
☆ ब्लैक रोलर – यह अमेरिका में चलने वाली गर्म व धूल भरी आंधीयां है।
☆ सिमूम – अरब के रेगीस्तान में चलने वाली गर्म व शुष्क हवा जिससे तेल आंधी आती है व दृश्यता समाप्त हो जाती है।
☆ सिरॉको – यह गर्म शुष्क तथा रेतभरी हवाएं है जो सहारा के रेगीस्तानी भाग से उतर की ओर भूमध्यसागर होकर इटली व स्पेन में प्रविष्ट हो जाती है। यहां इसे रक्त वर्षा भी कहा जाता है, क्योकि इसमें सहारा की लाल रेत होती है।
☆ टेम्पोरल – यह मध्य अमेरिका में चलने वाली मानसूनी हवा है।
☆ हरमट्टन – सहारा रेगिस्तान में उतर पूर्व तथा पूर्वी दिशा से पश्चिमी दिशा में चलने वाली यह गर्म तथा शुष्क हवा है जिसे गिनी तट पर डॉक्टर हवा कहा जाता है। जिससे मौसम सुहावना व स्वास्थ्यवर्धक हो जाता है।
ठण्डी स्थानीय पवने
☆ पैंपेरो – ये अर्जेंटीना, चिली व उरूग्वे में बहने वाली ठण्डी ध्रुवीय हवाएं है।
☆ बोरा- यह इटली में चलने वाली शुष्क व अत्यधिक ठण्डी हवा है।
☆ जूरन– यह जूरा पर्वत (स्विट्जरलैण्ड) से जेनेवा झील (इटली) तक चलने वाली ठण्डी व शुष्क हवा है।
☆ बाईज- यह फ्रांस में प्रभावी रहने वाली अत्यंत ठण्डी व शुष्क पवने है।
☆ लेवांटर- यह स्पेन में प्रभावी रहने वाली अत्यंत शक्तिशाली पूर्वी ठण्डी पवने है।